हिन्दी की दशा


अभी पिछले सप्ताह मैं 3-4 हिन्दी magazines खरीद कर लाया। इच्छा थी कि कुछ हिन्दी में पढ़ूँ, और जानूँ कि हिन्दी में क्या लिखा जा रहा है। बीच बीच में मुझे ये बुखार चढ़ जाता है। खैर, magazines थीं ये: पाखी, कथादेश, हंस, और “आहा! जिंदगी।” पढ्न शुरू किया दो-तीन दिन की सुस्ती के बाद। उलट-पलट कर देखा तो बड़ी दिक्कत हुई समझने में। फिर लगा की शायद बड़े दिनों से पढ़ा नहीं है, सो जंग लग गयी होगी मेरी भाषा में, सो थोड़ी मेहनत करके पढ़ ही लेता हूँ कुछ। काफी मशक्कत के बाद 3 कहानियाँ और कुछ कवितायें पढ़ डाली। पढ़ने के बाद काफी निराशा हुई, दो-तीन विचार आए दिमाग में जो यहाँ share करना चाहता हूँ:
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स्वर गान

अ से अनार, आ से आम, अपना तो है पढ़ना काम। छोटी इ से इमली, बड़ी ई से ईख, मुन्ने राजा कुछ तो सीख। छोटा उ से उल्लू, बड़ा ऊ से ऊन, दिन में सूरज, रात में मून। ए से एड़ी, ऐ से ऐनक, ओ से ओखली, औ से औरत। अं से अंगूर, अः से अः, सीख गए हम, हिन्दी के स्वर।   A se anaar, aa se aam, Apna to hai padhna kaam. Choti e se imli, badi e se eekh, Munne raja, kuch to seekh. Chota u se ulloo, bada oo se oon, Din mein sooraj, raat mein … Continue reading स्वर गान