इस सुबह में, बात ही कुछ और है।
चहचहाहट, सरसराहट,
लालिमा की चमचमाहट,
कह रहे सब, गौर कर लो,
नव प्रभामय, यह नवेली भोर है।
क्या नया है, जानते हो?
स्याह धुल कर, श्वेत बन कर,
क्यों बढ़ा है, जानते हो?
विश्व-व्यापी संक्रमण को बाँधने,
मृत्यु के तांडव-तिमिर को साधने,
प्राण का संचार करने,
शत्रु का संहार करने,
हो चुका है,
शक्ति का अब आगमन।
देता सबको तन-मन का बल,
उसके हाथों का जीवन-जल,
वह जीवन-निर्झरिणी, उसने,
पिया संक्रमण का हालाहल।
कौन है वो?
पूछते हो, नाम क्या है?
आई, माँ, या अग्रजा,
‘सिस्टर’, या उपचारिका,
काम में दम, नाम में क्या?
धात्री है वो, आदि-शक्ति का मूर्त्त-रूप है,
इस संकट में, वो अमर्त्य, अमृत-स्वरुप है,
श्रद्धानत हो, वंदन कर लो, करो समर्पण,
मृत्यु-तिमिर छँटने को है, किलकेगा जीवन।
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