Menu Close

क्या खोया? क्या देखा?

कुछ ने सब कुछ,

सब ने कुछ-कुछ,

खोया चन्द महीनों में।  


कुछ ने खोई – 

सुख-सुविधायें,

पार्टी-वार्टी,

बाजे-गाजे,

शोर-शराबे,

दारू-बाजी,

सैर-सपाटॆ। 


कुछ ने खोई – 

भरी जिन्दगी,

जीवन संगी,

खिलता बचपन,

मां का आंचल,

सघन मित्रता,

इच्छा शक्ति। 



कुछ ने सब कुछ,

सब ने कुछ-कुछ,

देखा भी है। 


कुछ ने देखी – 

दवा फ़रेबी,

हवा फ़रेबी,

ओछी सत्ता,

जीर्ण व्यवस्था,

निर्मम शासन,

उथले भाषण,

धन-लोलुपता,

मृत नैतिकता।


कुछ ने कुछ अच्छा भी देखा – 

अपरिचितों की उदारता,

सहकर्मियों का सम्बल,

मित्रों की संवेदनशीलता,

अपनों का त्याग,

इच्छाशक्ति का विजयनाद,

सक्षम नेतृत्व का चमत्कार। 



अब सवाल ये हैं – 

आपने क्या खॊया?

आपने क्या देखा?

आपने क्या पाया?

आपने क्या सीखा?


कैसा देश चाहते हैं आप?

कैसे अपरिचित?

कैसे सहकर्मी?

कैसे मित्र?

कैसे अपने?

कैसा नेतृत्व?

कैसी सियासत?

कैसा नेता?

कैसी नैतिकता?



अगर ये सवाल,

बेचैन कर रहे हैं आपको,

तो आपकी नैतिकता अभी बाकी है,

और देश को बदलने के लिये,

बस इतना ही काफ़ी है।

Related Posts